एहसास की रोशनी
एकाएक एक दिन
कर गयी रोशन
इस दिल के कुछ ख़ाली अँधेरे खाने
पुरानी बंद किताब के पन्ने
कुछ अजीब लगा
बहुत सारी पुरानी चीज़ें
चेहरे, लोग, बातचीत
एक नया शहर नया घर नया कमरा
नई ज़िन्दगी, नई नौकरी, नई बेकारी
हाँ नए परिवार में चंद पुराने दोस्तों ने माहौल बदल दिया
हाथ मिलाना गले लगना शोर मचाना
"अरे तुम भी! यहाँ? वाह मज़ा आ गया।"
इतना जाना पहचाना तहलका
जैसे बीच समुद्र एक हरा भरा द्वीप मिल गया हो
मेहमान अभी कमरे के दरवाज़े पर ही था
अंदर संदूक रखने का भी मौका नहीं मिला था
शोर भी बंद नहीं हुआ था
उस परिवार के साधारण से लोग चारों ओर खड़े थे
इस हंगामे को मज़े लेकर देख रहे थे
भरा पूरा परिवार था
बा थीं तीन बच्चे और मम्मी पापा
कुछ मुस्करा रहे थे कुछ हंस रहे थे
बा को ये सब पागलपन लग रहा था
इन सबसे अलग सफ़ेद फ्रॉक में एक बच्ची थी
भावरहित चुप और शांत
उसका दांया कन्धा दीवार पर टिका था
पर उसकी बड़ी बड़ी गोल आँखें
मेहमान पर टिकी थीं
मेहमान ने एक सरसरी सी नज़र उस पर डाली
और देखा कि
उसकी मासूम निगाहें उस पर ही टिकी थीं
ये देख कर मेहमान ने उसे नमस्ते कह दिया
उस बच्ची को ये पता नहीं था कि
किसी को लगातार इतनी देर तक देखना
मासूमियत की निशानी है
और मेहमान को ये पता नहीं था कि
अपनी ज़िन्दगी के इस बेहद नाज़ुक मोड़ पर
वो कितनी सही जगह आ गया है