सारे रिश्ते भुला कर
अपना पराया गँवा कर
ज़िन्दगी आ गयी है
ऐसे मक़ाम पे
जहाँ न सुकून है न दर्द है
कभी सुकून है तो दर्द भी है
दोनों साथ साथ हैं
फर्क मिट गया है दोनों के बीच का
कभी सुकून दर्द की वजह होता है
तो कभी दर्द में सुकून छुपा होता है
सूरज ढ़लता और चढ़ता साथ साथ
सुबह और शाम साथ साथ
ख़बर नहीं कि वक़्त चल रहा है
या थमा हुआ है
मैं कहीं जा रहा था
या आ रहा था
या ऐसा कुछ हुआ ही नहीं
मैं कहीं गया ही नहीं
कहीं जाने वाला ही नहीं था
आना जाना सिर्फ एक ख़याल था
हर एक शख्स बुत बना हुआ था